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कृष्णजी महाराज, अपने भाई को विवाह करने के लिये समझा रहे हैं । अतः, उन्होंने भी श्री नेमिनाथजी को विवाह करने के लिये बहुत समझाया । इस तरह, सारा दिवस आनन्द में ही व्यतीत हो गया ।
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इसी तरह, फाल्गुण तथा चैत्र का महीना भी व्यतीत हो गया और वैशाख का महीना आया । गर्मी की अधिकता से मनुष्यों के जी घबराने लगे । ऐसे समय में, सब ठण्डक चाहते थे । ठण्डक की इच्छा से ही, श्रीकृष्ण महाराज अपनी पटरानियों तथा श्री नेमिनाथ के साथ गिरनार पर्वत पर आये ।
गिरनार के बगीचों में लताओं के सुन्दर-सुन्दर मण्डप, तथा वृक्षों की हरी-हरी घटा - सी छाई हुई है। वहाँ, काँच के सदृश साफ तथा सुन्दर - पानी के हौज भरे हैं ।
गर्मी दूर करने के लिये, सब उन हौजों में नहाने लगे । नहाते - नहाते, सत्यभामा आदि रानियों ने श्री नेमिनाथ के विवाह न करने के विचार की दिल्लगी की । प्रेमपूर्वक, अन्य भी बहुत-सा मज़ाक किया और विवाह करने के लिये बहुत समझाया ।