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: ७ : फाल्गुण का महीना आया । पलास के वृक्षों में, लाल-लाल फूल खिल रहे हैं । आम के वृक्षों में मौर आ रहा है । खिरनी के वृक्ष, नये हरे-हरे पत्तों से शोभित हो रहे हैं । कोयल, अत्यन्त-मीठे-स्वर में कुहुक रही है सरोबर में हंस तैर रहे हैं। इस समय, गिरनार-पर्वत की शोभा निराली ही होती है । जब, सारी प्रकृति में ही आनन्द का समावेश होजाता है, तब भला कौन ऐसा होगा, जो आनन्द न करना चाहे ? इसी ऋतु का आनन्द लूटने, श्रीकृष्णमहाराज अपनी पटरानियों सहित गिरनार-पर्वत पर आये हुए हैं। साथ ही, श्री नेमिनाथ तथा द्वारिका के अन्य बहुत से लोग भी आये हैं।
श्रीकृष्ण तथा सत्यभामा आदि पटरानियें, प्रकृति की शोभा देखती हुई, वहां की कुंजों में घूम रही हैं। ऐसे समय में, श्रीकृष्ण को श्री नेमिनाथ का विचार आया। उन्होंने सोचा-यदि श्री नेमिनाथ लग्न करें, तो अच्छा हो । जैसे भी होसके, मैं उनका चित्त विवाह करने की तरफ आकर्षित करूँ। ऐसा विचारकर, श्रीकृष्ण ने फूलों की एक माला बनाई और श्री नेमिनाथजी के गले में पहनाई। इसे देखकर, श्रीकृष्ण की रानियों ने समझ लिया, कि-श्री