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खेमा-देदराणी हैं "। इसके बाद, खेमा सेठ को पालकी में बैठाकर, चाँपानेर लेगये। दूसरे दिन, चाँपसी-मेहता तथा अन्य महाजनलोग, खेमा. सेठ को लेकर कचहरी में पहुंचे।
खेमा सेठ ने तो, वही अपना फटा-टूटा कुर्ता पहन रखा था तथा फटी हुई पगड़ी सिर पर बाँध रखी थी और हाथ में, एक छोटी-सी गठरी लिये
हुए थे।
चाँपसी-मेहता ने बादशाह से कहा, कि-"ये सेठ गुजरात को ३६० दिनों के लिये, मुफ्त में अन्न देंगे"। बादशाह, इस मैले-कुचैले बनिये को देखकर, बड़े आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने खेमा से पूछा, कि " तुम्हारे कितने गाँव हैं ?"
खेमा ने कहा-" केवल दो"। बादशाह-" कौन-कौन से ?"
खेमा सेठ ने अपनी गठरी खोलकर उसमें से एक पली तथा तराजू निकाली और बादशाह से कहा, कि-" एक तो यह पली है और दूसरी है तराजू। इस पली से तो हम घी-तेल बेंचते हैं और तराज से अनाज खरीदते हैं।"
बादशाह, यह देखकर बड़े प्रसन्न हुए और खेमा सेठ की बड़ी तारीफ की।