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खेमा-देदराणी
खेमा ने, हलुआ-पूड़ी तथा भजिये - पकौड़ी यदि पकवान तयार करवाये और उन लोगों को बड़े प्रेम से भोजन करवाया। भोजन कर चुकने पर, खेमा ने उन से पूछा, कि – “ आप लोग किस कार्य के लिये बाहर निकले हैं ? " सेठों ने, सारी कथा कह सुनाई और फेहरिस्त में खेमा का नाम लिखकर, वह खेमा के आगे रख दी । खेमा को उस लिस्ट में अपना नाम देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई । उसने कहा, कि – “ मैं अपने पिता से पूछकर जवाब देता हूँ" ।
खेमा, अपने बूढ़े - पिता देदराणी के पास गया और उनसे सब हाल कह सुनाया । देदराणी ने कहा, कि - " बेटा ! धन आजतक न तो किसी के साथ गया है और न जावेगा । पैसा फिर लौटकर मिल सकता है, किन्तु अच्छा-मौका बार - बार नहीं आता । यह तो घर बैठे गंगा आ गई है, अतः तू इससे जितना भी लाभ उठा सके, उठा ले ।" खेमा ने, फेहरिस्त में अपने नाम के सामने ३६० दिन लिखकर, उसे चॉपसी - मेहता के हाथ पर रख दिया ।
यह देखकर, सब के सब भौचक्के से रह गये । वे सोचने लगे, कि कहीं खेमा के सिर पर पागलपन तो नहीं सवार है ? फिर चाँपसी - महेता बोले, कि -" खेमा सेठ ! जरा विचार कर के लिखिये " ।