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________________ खेमा-देदाणी सत्कार किया और सब ने एकत्रित होकर चन्दे की फेहरिस्त तयार की । यहाँ, दो-महीनों के खर्च की व्यवस्था होगई। फिर ये लोग धोलका आये, जहाँ दस-दिन लिखे गये। इस तरह, चन्दे की लिस्ट बनाने में उन्हें बीसदिन तो लग गये, शेष केवल दस-दिन और रहे । इन दस-दिनों में ही, धोलका से चाँपानेर पहुँचना था, अतः महाजनलोग धंधुके जाने के लिये तेजी से चल पड़े । रास्ते में, हडाला नामक एक गाँव आया। हडाला में खेमा नामक एक श्रावक रहता था ! उसे यह बात मालूम हुई, कि चाँपानेर के महाजन लोग, मेरे घर के पास होकर जारहे हैं । अतः वह दौड़ता हुआ गाँव से बाहर आया और हाथ जोड़कर यह प्रार्थना करने लगा, कि-"मेरी एक नम्र विनति स्वीकार कीजिये"। चाँपसी-मेहता तथा अन्य लोग, इस फटेहाल बनिये को देखकर मन में बड़े परेशान हुए और सोचने लगे, कि-" हम जहाँ जाते हैं, वहीं माँगनेवालों का ताँता-सा बँधा रहता है । इस भाई को और न मालूम क्या प्रार्थना करनी है। "यों विचारकर, उन्होंने खेमा से कहा, कि-" अवसर देखकर जो कुछ माँगना हो, वह माँगो"।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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