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खेमा-देदराणी के लिये घास ही मिलती थी और न मनुष्यों के लिये अन्न-वस्त्र । पशुओं की मृत्यु होने लगी और मनुष्यों के झुण्ड के झुण्ड 'अन्न-अन्न' चिल्लाते हुए इधरउधर दौड़ते दिखाई देने लगे।
बादशाह को जब यह हाल मालूम हुआ, तो उन्होने तय किया, कि इस समय नगरसेठ की परीक्षा लेनी चाहिये । अतः उन्होंने बंबभाट को बुलाया
और उससे कहा, कि-" बंब ! यदि चाँपसी मेहता शाह-बादशाह के समान हों, तो एक-वर्ष तक सारे गुजरात को अन्न-वस्त्र देकर जीवित रखें । यदि वे ऐसा न कर सकेंगे, तो शाह कहनेवाले तथा कहलानेवाले, दोनों को अपराधी समझा जावेगा।"
भाट ने कहा-"जो हुक्म"।
उसने, चाँपसी-मेहता के पास आकर उनसे यह बात कही, कि-"बादशाह ने, आज मुझ से यह शर्त बतलाई है, कि यदि चाँपसी-मेहता गुजरात का एक-वर्ष तक पालन कर सकें, तब तो वे सच्चे शाह हैं। नहीं तो शाह कहने और कहलानेवाले दोनों ही अपराधी माने जाकर, दण्ड के भागी होंगे।"
चाँपसी-मेहता ने कहा, कि-" इसके लिये तुम फिर जाकर एक-महीने की मुहलत माँग आओ।