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वस्तुपाल-तेजपाल मन्दिर बनवाते समय तो उन्होंने पीछे फिरकर यह कभी न देखा, कि इन पर कितना धन खर्च हो रहा है। उन्होंने देश के अच्छे से अच्छे कारीगर एकत्रित किये और नकाशी करते समय गिरनेवाले चूरे के बराबर उन लोगों को सोना तथा चाँदी पुरस्कार में दिया । इन मन्दिरों को शीघ्र पूरा करवाने के लिये उन्होंने अपनी तरफ से वहाँ भोजनालय की व्यवस्था की और जाड़े के दिनों में प्रत्येक कार्यकर्ता के पास एक सिगड़ी रखवाने का इन्तिजाम किया । लगभग बारह-करोड़ रुपयों के खर्च से ये मन्दिर तयार हुए, जिनकी जोड़ी आज भी संसार में कहीं नहीं है। विमलशाह के मन्दिर के पास ही ये मन्दिर भी बने हुए हैं। प्रिय-पाठको ! हम आपसे यह अनुरोध करते हैं, कि आप कम से कम एक बार तो इन देलवाड़े के मन्दिरों को अपने जीवन में अवश्य देखिये । ___ इसके पश्चात्, उन्होंने और भी बहुत-से मन्दिर तथा उपाश्रय बनवाये एवं अनेकों पुस्तक-भण्डार स्थापित किये। बारह-बार शत्रुजय और गिरनार के संघ निकाले । ये संघ इतने बड़े-बड़े थे, कि हमलोगों के चित्त में तो कभी उतने बड़े संघों का खयाल भी नहीं आ सकता । एक बार के संघ में तो सात-लाख मनुष्य थे। ___ इन दोनों भाइयों की उदारता केवल जैनियों अथवा केवल गुजरातियों के लिये ही न थी। इन्होंने प्रत्येक धर्म