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वस्तुपाल-तेजपाल ___ इस तरह इन दोनों भाइयों ने, अनेक छोटे-मोटे युद्ध कर के, गुजरात की सत्ता अच्छी तरह जमाई और चारों तरफ शान्ति तथा व्यवस्था की स्थापना करके विजय का डङ्का बजाया।
८: __ ये दोनों भाई लड़ाई तथा राज्य-कार्य में जैसे निपुण थे, वैसे ही धर्म में भी बड़ी दृढ़-श्रद्धा रखनेवाले थे। वे, अष्टमी
और चतुर्दशी को तप करते तथा सामायिक एवं प्रतिक्रमण भी नियमित रूप से करते थे । अपने धर्म-बन्धुओं पर उन्हें अगाध-प्रेम था। प्रतिवर्ष एक-करोड़ रुपया अपने धर्म-बन्धुओं के लिये खर्च करने का उन्होंने व्रत ले रखा था।
उनकी उदारता की कोई सीमा न थी। वे मुक्त-हस्त होकर दान करते ही जाते थे । होता यह था, कि ज्यों-ज्यों वे धन का सदुपयोग करते थे, त्यों-त्यों धन और बढ़ता जाता था । इसलिये वे दोनों भाई विचार करने लगे, कि इस धन का आखिर किया क्या जावे ?
तेजपाल की स्त्री अनुपमादेवी बुद्धि की भण्डार थीं, अतः इसके लिये उनसे सलाह पूछी। उन्होंने जवाब दिया, कि इस धन के द्वारा पहाड़ों के शिखरों की शोभा बढ़ाओ अर्थात् वहाँ सुन्दर-सुन्दर मन्दिर बनवाओ। यह सलाह सब को पसन्द पड़ी, अतः शत्रुजय, गिरनार और आबू पर भव्यमन्दिरों का निर्माण करवाया गया। इनमें से भी, आबू के