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________________ वस्तुपाल-तेजपाल दत के हाथ थोड़ा-सा काजल, एक चोली और एक साड़ी वीरधवल को भेंट-स्वरूप भेजी। इस अपमान से राजा वीरधवल बहुत चिढ़े। उनके नेत्रों से, आग-सी बरसने लगी। उन्होंने लाल-लाल नेत्रो से अपने सभासदों की तरफ एक आशापूर्ण दृष्टि से देखा, किन्तु कोई भी घूघुल को जीतकर पकड़ लाने के लिये तयार न हुआक्योंकि लोगों के हृदयों पर घूघुल का बड़ा आतङ्क जमा हुआ था । अन्त में तेजपाल उठकर खड़े हुए और यह प्रतिज्ञा की, कि मैं शीघ्र ही घूघुल को जीतकर उसे यहाँ पकड़ लाऊँगा। राजा वीरधल यह देखकर बड़े प्रसन्न हुए। तेजपाल एक बड़ी सेना लेकर गोधरे की तरफ चले। वहाँ पहुँचने पर एक भीषण-युद्ध हुआ । इस युद्ध में घूघुल पकडा गया और एक पीजरे में बन्द करके धोलका लाया गया । यहाँ उसी की भेंट भेजी हुई चोली तथा साड़ी उसे पहनाई गई। इस अपमान से दुःखी होकर उसने आत्महत्या कर ली। खंभात में सिद्दीक नामक एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह वहाँ का मालिक-सा बना बैठा था । उसने एक बार ज़रा से अपराध के कारण नगरसेठ की सम्पत्ति लूट ली और
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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