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वस्तुपाल-तेजपाल भाग्य है, कि आपकी हम पर ऐसी कृपा हुई। किन्तु हमें एक प्रार्थना करनी है, उसे आप ध्यानपूर्वक सुन लीजिये । वह यह, कि-जहाँ अन्याय होगा, वहा हम लोग जरा भी भाग न लेंगे। राज्य का चाहे जितना जरूरी-काम हो, किन्तु देव-गुरु की सेवा से हमलोग न चूकेंगे। राज्य की सेवा करते हुए यदि आपसे कोई हमारी चुगली करे और उसके कारण हमें राज्य छोड़कर जाने का मौका :आवे, तो भी हमारे पास जो तीनलाख रुपये का धन है, वह हमारे ही पास रहने देना होगा। यदि आप इन बातों का राजपुरोहित की साक्षी से वचन दें, तब तो हम आपकी सेवा करने को तयार हैं, नहीं तो आपका कल्याण हो !"
राजा ने इसी तरह का वचन देकर, वस्तुपाल को धोलका तथा खंभात का महा-मंत्री बनाया और तेजपाल को सेनापति का पद दिया।
जिस समय वस्तुपाल महा-मंत्री बने उस समय न तो खजाने में धन था और न राज्य में न्याय । अधिकारीलोग बहुत ज्यादा रिश्वतें खाते और राज्य की आय अपनी ही जेब में रख लेते थे। उन्हें दबाने की शक्ति किसी में भी न थी। इस सारी स्थिति को ध्यान में रखकर ही वस्तुपाल ने अपना काम शुरू किया।