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________________ वस्तुपाल-तेजपाल इस समय गुजरात की स्थिति बड़ी डावाडोल थी। इसी कारण राजा वीरधवल सोच रहे थे. कि यदि मुझे चतुरप्रधान तथा सजग-सेनापति मिल जाय, तो मेरी इच्छाएँ पूर्ण हों। राजपुरोहित को जब यह बात मालूम हुई, कि राजाजी प्रधान तथा सेनापति ढूँढने की चिन्ता में हैं, तो वे राजा के पास गये। वहाँ जाकर उन्हों ने राजा से कहा-"महाराज ! चिन्ता दूर कीजिये । आपको जैसे मनुष्यों की आवश्यकता थी, वैसे ही दो रत्न इस नगर में आये हुए हैं। वे न्याय करने में बड़े निपुण हैं, राज्य व्यवस्था खूब जानते हैं और जैन-धर्म के तो मानों रक्षक ही हैं। किन्तु सब पर समान रूप से प्रीति रखते हैं। यदि आप आज्ञा दें, तो मैं उन्हें आपके सामने हाजिर करूँ।" राजा ने, पुरोहित को आज्ञा दी, अतः वे इन दोनोंभाइयों को राज-सभा में लेगये । वहाँ राजा के सामने सुन्दर भेंट रखकर, इन दोनों भाइयों ने उन्हें प्रणाम किया। राजा वीरधवल ने इन्हें जैसे सुना था, वैसे ही पाया। अतः वे बोले, कि-"तुम लोगों की मुलाकात से मैं बड़ा प्रसन्न हुआ हूँ और यह राज्य का सारा कारोबार तुम्हें सौंपता हूँ"। दोनों भाई यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए। फिर वस्तुपाल ने राजा से कहा-"महाराज ! यह हम लोगों का अहो
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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