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वस्तुपाल - तेजपाल गहरी - प्रीति और धर्म पर अपार श्रद्धा थी । इन दोनों भाइयों की जोड़ी सब का चित्त हरण करती और सब पर प्रभाव डालती थी ।
जब ये सयाने हुए, तो पिता ने गुणवती - कन्याओं के साथ इन दोनों के विवाह कर दिये । वस्तुपाल का ललिता से तथा तेजपाल का अनुपमा से ।
थोड़े दिनों के बाद, पिता की मृत्यु होगई, अतः पितृभक्त पुत्रों को बड़ा दुःख पहुँचा ।
इस दुःख को भूलने के लिये वे मॉडल में आकर बसे और माता की बड़ी सेवा - भक्ति करने लगे । यहाँ अच्छे - व्यवहार से उन्होंने थोड़े ही समय में काफी नामव प्राप्त की ।
थोड़े समय के बाद उनकी प्यारी - माता का भी देहान्त होगया, जिससे उन्हें बड़ा दुःख पहुँचा । इस दुःख को दूर करने के लिये उन्होंने शत्रुंजय की यात्रा की। पवित्र तीर्थ शत्रुंजय की यात्रा करने पर किसका मन शान्त नहीं होता ? उसके पवित्र - वातावरण में इन दोनों भाइयों का शोक दूर होगया । वहाँ से वे वापस लौटे और राज-सेवा की इच्छा से मार्ग में धोलका नामक ग्राम में रुक गये । यहाँ उनकी राजपुरोहित - सोमश्वर के साथ घनिष्ट मित्रता होगई।