________________
विमलशाह ___ इस तरह विमलशाह सब प्रकार की सांसारिक-सम्पत्ति प्राप्त करके, आनन्द करने लगे। इतने ही में एक बार श्री धर्मघोष नामक आचार्य वहाँ पधारे। उन्होंने पवित्र-जीवन का उपदेश दिया तथा धर्म का आसली मर्म समझाया । फिर, उन्हों ने विमलशाह की तरफ लक्ष्य करके कहा, कि" विमलशाह ! तुमने अपना सारा-जीवन धन तथा सत्ता प्राप्त करने में बिताया है। अतः अब कुछ धर्म-कार्य करो और कुछ परलोक की भी सामग्री एकत्रित करो।" विमलशाह को यह बात ठीक मालूम हुई । उन्हें, अपने जीवन में की हुई अनेक भयङ्कर-लड़ाइयों का स्मरण हो आया, जिस के कारण बड़ा पश्चाताप हुआ। अन्त में, वे गद्गद्-स्वर में बोले, कि-" गुरुदेव ! आप जो आज्ञा दें, वह करने को मैं तयार हुँ, अतः फरमाइये, कि मेरे लिया क्या हुक्म है ?" गुरुजी ने कहा, कि-" आबू के समान सुन्दर-पहाड़ पर एक भी जैन-मन्दिर नहीं है, अतः वहाँ जैन-मन्दिर तयार करवाओ" । विमलशाह ने, यह बात स्वीकार कर ली।
विमलशाह, मन्दिर वनवाने के लिये कुटुम्ब सहित आबू पहाड़ पर आये । उस समय आबू पर ब्राह्मणों का बड़ा ज़ोर था। शिवमन्दिर वहाँ इतने अधिक बने थे, कि सिर्फ उनकी पूजा करनेवाले पुजारी ही ग्यारह-हजार रहते थे। विमलशाह ने, वहाँ पहुँचकर मन्दिर के लिये जगह मांगी।