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विमलशाह -जो भीमदेव की अधीनता नहीं स्वीकार करता था-भीमदेव की महत्ता मानने को विवश किया।
विमलशाह ने अपने पराक्रम से विजय प्राप्त की और दोहाई राजा भीमदेव की फिरवाई । यह मालूम होने पर भीमदेव समझ गये, कि विमल-मंत्री को अलग करके.. मैंने बड़ी-भारी भूल की है। उन्हें इसके लिये बड़ा पश्चात्ताप हुआ। __चारों तरफ अपना दवाब जमाकर, विमलशाह ने चन्द्रावती में राजगद्दी ग्रहण की। इस समय पर, भीमदेव ने अपनी तरफ से छत्र तथा चवर भेंट में भेजे। विमलशाह ने भी अपने मन से क्रोध को दूर करके, ये चीजें स्वीकार कर लीं।
राजा होजाने के बाद, विमलशाह एक दिन महल की अटारी पर चढकर नगर देखने लगे । किन्तु उन्हें चन्द्रावती नगर, कुछ दर्शनीय न मालूम हुआ। अतः उन्होंने, उसको फिर से बसाने का निश्चय किया।
चन्द्रावती नगर, फिर से बनवाया गया। उसके बाजार सीधे तथा सुन्दर तयार करवाये गये और बीच के चौक विशाल तथा दर्शनीय रखे गये । नगर में सुन्दर नकाशीदार अनेक पक्के जिन-मन्दिर बनवाये गये। परम-शान्ति के धाम उपाश्रय रचे गये तथा बावड़ी, कुए, एवं तालाब भी काफी संख्या में तयार होगये।