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________________ विमलशाह यह सुनकर, विमलशाह - मंत्री समझ गये कि राजा कच्चे - कान के हैं । वे दूसरों के बहकाने में लगे हैं । अतः थे मेरे विरुद्ध कोई कार्रवाई करें, उससे पहले यही उचित कि मैं स्वयं ही चला जाऊँ । यों विचारकर, उन्होंने वहाँ से चलने की तयारी की । सोलह सौ ऊँटों पर सोना भरा और हाथी - ऊँट तथा रथ तयार करवाये । पाँच हजार घोड़े और दस हजार पैदल अपने साथ लिये । फिर भीमदेव से आज्ञा लेने गये । वहाँ से विदा होते समय, उन्होंने राजा से कहा, कि - " महा- राज ! आपने मुझे जैसी परेशानी में डाला, वैसी परेशा-नी में कृपा करके और किसी को मत डालियेगा " 1 विमलशाह - मंत्री, अपना वैभव साथ लेकर. आबू की तरफ चले । उन दिनों आबू की तलहटी में, चन्द्रावती - नामक एक नगरी थी । वहाँ के राजा ने, जब यह बात सुनी, कि विमल - मंत्री अपनी सेना सहित आ रहे हैं, तो वह नगर छोड़कर चला गया । विमल - मंत्री, यहाँ भीमदेव के सेनापति की ही तरह काम करने लगे । यहाँ रहते हुए, उन्होंने बहुत-सी विजयें प्राप्त कीं । सिन्धदेश का राजा पंडिया, बड़ा घमण्डी हो गया था, अतः उसे बुरी तरह हरा दिया । परमार राजा धंधुदेव को
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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