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बिमलशाह
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विमलशाह से कहा, कि - " मंत्रीजी ! यह राजमल्ल अपने बल का बड़ा अभिमान करता है, अतः इसकी एक दिन परीक्षा तो करो " ।
मल्ल के साथ विमलशाह की कुश्ती हुई। कुश्ती के अनेक दाँव खेले गये, जिसमें विमलशाह ने मल्ल को बड़ी तेजी से पटककर, विजय प्राप्त की । सब दर्शकों के मुँह से वाह-वाह की ध्वनि निकल पड़ी ।
राजा और उनके मंत्रीलोग अब चिन्ता करने लगे, कि " विमल में दैवी शक्ति है, जिससे वह किसी का मारा नहीं मर सकता । अब कोई ऐसा उपाय सोचना चाहिये, जिससे वह यहाँ से चला जाय। " इसके बाद, उन्होंने निश्चय किया, कि – “ उसके दादा के समय का ५६ करोड़ रुपया लेना निकालकर, उससे अब माँगा जावे । यदि वह यह कर्ज अदा करना स्वीकार करेगा, तो भिखारी हो जायगा और यदि न देना चाहेगा, तो राज्य छोड़कर चला जावेगा ।"
दूसरे दिन, विमलशाह राज - दरबार में गये । इन्हें देखकर, राजा भीमदेव इनकी तरफ पीठ करके बैठ गये । विमलशाह ने मंत्रियों से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बतलाया, कि - राजा को हिसाब के बारे में गुस्सा आ रहा है । आप, या तो आपके खाते में बाकी निकलते हुए ५६ करोड़ रुपये दे दीजिये, या नया खाता लिख दीजिये । "
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