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विमलशाह स्त्री के गाल को ज़रा भी चोट पहुंचे, तो आपको जो उचित प्रतीत हो, वह कीजियेगा।"
थों कहकर, विमल ने अपनी बाण-विद्या बतलाई, जिसे देखकर राजा भीमदेव बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने विमल को पाँच-सौ घोड़े और दण्डनायक (सेनापति) की पदवी दी।
विमल बड़ा चतुर था । उसे यह अच्छी तरह मालूम था, कि सेना को किस तरह अपने कब्जे में रखना चाहिये और अपनी प्रतिष्ठा तथा अपना प्रभाव किस तरह बढ़ाना चाहिये । उसका बड़ा दबाव था । गुजरात के सब छोटेछोटे राजा लोग उससे भय मानते थे । थोड़े ही समय में बिमल अपनी चतुराई से दण्डनायक के पद से बढ़कर महामंत्री होगया।
अब वह बड़ी शान से रहने लगा । उसने अपने रहने के लिये राजा से भी अधिक अच्छा महल बनवाया
और एक सुन्दर गृह-मन्दिर बनवाया । मकान और मन्दिर के चारों तरफ एक सुन्दर-कोट तयार करवाया। देशविदेश से उत्तम-उत्तम हाथी-घोड़े मँगवाये और अपने लड़नेवाले योद्धाओं में वृद्धि की।
जिनेश्वरदेव की तरफ विमल की अपार भक्ति थी। वे अपनी अंगूठी में, जिनेश्वर की छोटी-सी तसवीर रखते