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में पड़ गये । स्वयं श्रीकृष्ण को भी आश्चर्य हुआ। वे विचारने लगे, कि यह शंख किसने बजाया हैं ? इसी समय हथियारखाने के रखवाले ने आकर प्रार्थना की, कि महाराज ! श्री नेमिनाथजी ने खेल ही खेल में उस भारी-शंख को उठाकर बजाया है।
श्रीकृष्ण, यह सुनकर आश्चर्य करने लगे और विचारने लगे, कि क्या श्री नेमिनाथ में इतना अधिक बल है ? अच्छा, मैं स्वयं जाकर इसकी परीक्षा करूंगा।
श्रीकृष्ण तथा श्री नेमिनाथ मिले, आपस में बातचीत हुई।
श्रीकृष्ण-भाई नेमिकुमारजी ! चलिये हमलोग आपस में कुश्ती लड़ें।
श्री नेमिनाथ-हा, मैं तैयार हूँ। लेकिन भाई! कुश्ती लड़कर मिट्टी में लोटने से तो यह अच्छा है, कि हमलोग एक दूसरे का हाथ लम्बा करके झुकावें।
श्रीकृष्ण-अच्छी बात है, ऐसा ही कीजिये।