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पेथड़कुमार आई, जिससे वे बड़ा शोक करने लगे। यह देखकर पेथड़कुमार ने कहा, कि-"महाराज ! मैं थोड़े ही समय में रानी लीलावती को आपसे ला मिलाऊँगा, आप ज़रा भी शोक न कीजिये"। जयसिंह को यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ, कि रानी लीलावती अभी जीवित ही है। फिर, पेथडकुमार ने जो कुछ सुना था, वह सब राजा से कह सुनाया। राजा ने लीलावती को मँगवाकर, उससे अपने अपराध के लिये क्षमा माँगी और फिर सुख से रहने लगे।
अब पेथडकुमार को वृद्धावस्था आनी शुरू हुई । इस समय, उनका मन अधिक पवित्र तथा अधिक सेवाभाववाला बन गया। उन्होंने सिद्धाचलजी की यात्रा के लिये संघ निकालने का इरादा किया।
बहुत-बड़ा संघ अपने साथ लेकर, उन्होंने सिद्धाचल ( शत्रंजय ) की यात्रा की और वहाँ श्री आदिनाथ भगवान की बड़ी भक्ति की । यहाँ से वे गिरनार गये । वहाँ एक सज्जन से स्पर्धा की बातचीत होजाने के कारण, इन्होंने ५६ मन सोना बोलकर इन्द्रमाल पहनी।