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पेथड़कुमार
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जल्लाद लोग लीलावती को लेकर जंगल में गये, किन्तु उसे मारने को उनकी हिम्मत न पड़ी, अतः यों ही छोड़ दी । रानी, वेश बदलकर शहर में फिर लौट आई । झाँझणकुमार ने चतुरतापूर्वक उसे अपने घर में छिपा लिया ।
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एक बार राजा के हाथी को शराब अधिक पिला दी गई, जिससे वह पागल होगया । थोड़ी देर उपद्रव कर चुकने के बाद, वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा । राजा को अपने प्यारे - हाथी की यह दशा देखकर, बड़ा दुःख हुआ । अनेकों उपाय करने पर भी हाथी की दशा न सुधरी। इसी समय उस दासी ने कहा, कि – “ महाराज ! यदि पेथड़कुमार का वस्त्र मँगवाकर हाथी को ओढ़वाइये, तो वह अवश्य ही अच्छा होजाय " । राजा ने ऐसा ही किया और हाथी उठ खड़ा हुआ। इसके बाद दासी ने वह सब बात कह सुनाई, कि किस तरह रानी को बड़े जोर का बुखार चढ़ आया था, जिससे मैंने उन्हें यह वस्त्र ओढ़ाया था - आदि ।
यह सुनकर, राजा को बड़ा दुःख हुआ । उन्होंने पेथड़कुमार को जेल से छोड़ दिया और उनसे अपनी भूल के लिये माफी माँगी । अब राजा जयसिंह को लीलावती की याद