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पेथड़कुमार
एक बार नगर में एक विद्वान-आचार्य पधारे । पेथड़कुमार ने उन्हें भक्तिपूर्वक वन्दना करके पूछा, कि"गुरुदेव ! मेरे पाँच लाख रुपये रखने की सीमा है, किन्तु धन उससे बहुत अधिक है। अतः आप बतलाइये, कि में उसे किस काम में खर्च करूँ ?" मुनिराज बोले, कि" महानुभाव ! इस समय मन्दिरों का बनवाना सब से अच्छा काम है, अतः तुम अपना धन उसी में लगाओ"। पेथड़कुमार को यह बात ठीक मालूम हुई, अतः उन्होंने अठारहलाख रुपये खर्च करके मॉडवगढ़ में एक भव्य-मन्दिर बनवाया। देवगिरि में एक सुन्दर जैन-मन्दिर तयार करवाया
और फिर भिन्न-भिन्न स्थानों पर बहुत से मन्दिर बनवाये । कहा जाता है, कि उन्होंने सब मिलाकर चौरासी मन्दिर बनवाये थे। ___ पेथडकुमार को अपने धम-बन्धुओं से बड़ा प्रेम था। उन्हें जब कोई भी स्वधर्मों मिल जाता, तो वे बड़े प्रसन्न हो उठते । ऐसे समय में यदि वे घोड़े पर बैठे होते, तो नीचे उतरकर उस स्वधर्मीबन्धु का सम्मान करते थे। अपने धर्म-बन्धुओं की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिये उन्होंने गुप्त-दान भी बहुत दिये ।