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पेथड़कुमार सब उनका उपदेश सुनने को गये; साथ ही पेथडकुमार भी गये । वहाँ मुनि-महाराज ने अमृत के समान मीठी-वाणी से पवित्र-जीवन समझाया। " ब्रह्मचर्य का पालन करो, सन्तोष धारण करो, तप से शरीर तथा मन पर संयम प्राप्त करो, भगवान की भक्ति से हृदय को पवित्र बनाओ-आदि। इस उपदेश का बहुत लोगों पर प्रभाव हुआ। किसी ने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया, किसी ने एक सीमा तक सम्पत्ति रखकर शेष अच्छे-कामों में खर्च कर डालने का व्रत लिया, किसी ने तप करने का व्रत लिया और किसी ने और-और व्रत लिये। उस समय बेचारे पेथडकुमार अपने दुःखी-जीवन का विचार करते हुए बैठे रहे। ____ फटे कपड़ों से बैठे हुए पेथड़कुमार को देखकर कुछ मसखरों ने कहा, कि-"गुरु महाराज ! सब को तो आपने कुछ न कुछ व्रत करवा दिया, किन्तु यह पेथड़ तो रह ही गया। इसे परिग्रह (धन-माल) की सीमा करवा दीजिये। यह भी, लाख-वर्षों में लखपती होजाने के काबिल है।" । ___ यह सुनकर मुनिराज बोले, कि-"महानुभावो ! ऐसा बोलना ठीक नहीं है। धन का अभिमान तो कभी किसी को करना ही न चाहिये। धन तो आज है और कल नहीं । कौन कह सकता है, कि कल सबेरे ही पेथड़कुमार तुम सब से अधिक धनवान न होजायगा ?"