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________________ पेथड़कुमार फिर साधुजी ने पेथड़कुमार से कहा, कि-"महानुभाव ! तुम परिग्रह की सीमा करलो" । पेथड़कुमार ने उत्तर दिया, कि-"गुरुदेव ! मेरे पास कुछ भी धन-माल है ही कहाँ, जो मुझे सीमा करने की आवश्यकता पड़े ?" । मुनिराज ने कहा, कि- "आज तुम्हारी यह दशा है, किन्तु कल ही तुम अच्छी-हालत में हा सकते हो । अतः तुम्हें परिग्रह की सीमा तो कर ही लेनी चाहिये ।" पेथड़कुमार ने मुनिराज को यह बात मान ली, अतः साधुजी ने उन्हें यह व्रत करा दिया, कि-"पाँच-लाख रुपये तक की सम्पत्ति रखकर, शेष सब धर्म के कार्यों में खर्च कर डालूँगा"। पेथड़कुमार को उस समय ऐसा जान पड़ा,कि-"परिग्रह की यह सीमा तो बहुत भारी है। मुझे तो पाच-हजार रुपये के भी दर्शन होना कठिन मालूम होता है, तो पाँच-लाख की स्वतन्त्रता कैसे ठीक होसकती है ? किन्तु गुरुजी ने जो यह सीमा बनवाई है, तो बहुत सोच-विचारकर ही बनवाई होगी।" यों सोचते हुए वे अपने घर चले गये। पेथड़कुमार की दशा, दिन-दिन खराब होने लगी। यहा तक, कि दोनों समय खाने को भी बड़ी मुश्किल से मिलने लगा । अतः परेशान होकर, वे अपना ग्राम छो. अपने कुटुम्ब को साथ लिये हुए परदेश को चल दिये।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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