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कुमारपाल
यहाँ से चलकर, कुमारपाल अपने ग्राम देथली को गये । सिद्धराज को यह हाल मालूम होते ही, उन्होंने अपनी सेना भेजी । इधर कुमारपाल को भी सेना के आने की बात मालूम होगई, अतः वे अपने लिये छिपने को जगह ढूँढने लगे। उस समय, सज्जन नामक कुम्हार ने, उन्हें अपने आँवे में छिपा दिया । राजा की फौज को कुमारपाल का पता न लगा, अतः वह निराश होकर वापस लौट गई ।
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कुमारपाल, यहाँ से अपने कुटुम्ब को मालवे की तरफ भेजकर, खुद परदेश में घूमने निकल गये । वहाँ, वोसिरी नामक एक ब्राह्मण से मित्रता होगई । वह ब्राह्मण, गाँव में से भिक्षा माँगकर लाता और कुमारपाल को खिलाता था । किन्तु यह दशा भी अधिक दिनों तक न रही। कुछ दिनों के बाद वोसिरी का भी साथ छूट गया, जिससे कुमारपाल को बड़ा कष्ट होने लगा । वे, घूमते-घूमते फटेहाल होकर, भूख की पीड़ा सहते और कष्टों से परेशान होते हुए खम्भात पहुँचे ।
यहाँ श्री हेमचन्द्राचार्य नामक एक जैन - आचार्य थे । उनका ज्ञान अगाध और चारित्र्य बड़ा निर्मल