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कुमारपाल
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खूब थक गये। दोपहर के समय, वे एक झाड़ के नीचे आराम करने बैठे । वहाँ, उन्होंने एक बड़ाविचित्र खेल देखा । एक चूहा, एक के बाद एक करके इक्कीस - रुपये अपने बिल में से बाहर लाया और फिर वापस उसी तरह लेजाने लगा । ज्यों ही वह एक रुपया लेकर बिल में गया, त्यों ही शेष बीस रुपये कुमारपाल ने उठा लिये । चूहे ने बाहर आकर देखा, कि रुपये नहीं हैं, तो वह सिर पटकपटककर वहीं मर गया। यह दृश्य देखकर, कुमारपाल बड़े दुःखी हुए और विचारने लगे, कि— " अहो ! इस प्राणी को भी धन पर कितना मोह है ? " । यह धन लेकर, वे आगे चले । यह तीसरा दिन था, किन्तु अब तक उन्हें खाने को कुछ भी न मिला था । वे इस समय थककर चूर-चूर हो रहे
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थे । ऐसे ही समय में, श्रीदेवी नामक एक महिला बैलगाड़ी में बैठकर, अपनी ससुराल से पीहर को जारही थी । कुमारपाल को दुःखी देखकर उसे दया आई, अतः उसने इन्हें खाने को दिया । इस भोजन से कुमारपाल को कुछ शान्ति मिली । उन्होंने उस बहिन से कहा, कि - " बहिनजी ! मैं कभी भी आप का उपकार न भूलूँगा "।