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कुमारपाल कुमारपाल, जब भागते-भागते दो-एक कोस दूर निकल गये, तब पीछे से घोड़ों की टापों की आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने विचारा, कि-" अब दौड़ने से काम नहीं चलेगा, कहीं थोडी देर के लिये छिप रहना चाहिये"। यों सोचकर, उन्होंने इधरउधर देखा, तो भीमसिंह नामक एक किसान काँटों की बाड़ लगाता हुआ दिखाई दिया। कुमारपाल उसी के पास गये और उससे अपना प्राण बचाने की प्रार्थना की। उस किसान को कुमारपाल पर दया आगई, अतः उसने इन्हें काँटों के ढेर के नीचे छिपा दिया।
थोड़ी ही देर में, पैरों के निशान ढूँढते हुए राजा के सिपाही वहीं आ पहुँचे । उन्होंने, भाले मार-मारकर काँटों का ढेर ढूँढ लिया, किन्तु कुछ भी पता न लगा। अतः ढूँढना छोड़कर, वे वापस घर को लौट गये।
रात के समय, भीमसिंह ने कुमारपाल को बाहर निकाला । उनका शरीर काँटों के लगने से लहूलुहान होगया था, जिसके कारण अपार पीड़ा होती थी। किन्तु यहाँ ठहरने का समय न था, अतः उन्होंने बड़े सबेरे उठकर फिर भागना शुरू कर दिया । भूखे-पेट और दुःखपूर्ण शरीर से भागते-भागते, वे