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________________ कुमारपाल कुमारपाल, बाबाजी का वेश करके, एक स्थान से दूसरे स्थान में भ्रमण करने लगे। किसी दिन खाने को मिल जाता और किसी दिन भूखे ही रहना पड़ता । यों करते-करते, इसी वेश में वे एक बार पाटण आये और वहाँ एक महादेव के मन्दिर में पुजारी नियुक्त होगये। राजा को जब इस बात की कुछ खबर लगी, तो उसने अपने पिता के श्राद्ध का बहाना करके, सब पुजारियों को भोजन करने बुलाया । उधर, कुमारपाल को यह बात मालूम होगई, कि मुझे मार डालने के लिये ही यह जाल रचा गया है। अतः उल्टी (के) का बहाना बनाकर, वे बाहर आगये। वहाँ से केवल पहनी हुई धोती लिये हुए, उनसे जितना भागा गया, उतना भागने लगे। सिर नंगा, पैर भी नंगे, शरीर खुला हुआ और ऊपर से दोपहर की गर्मी । किन्तु कर ही क्या सकते थे ? यदि भागने में ज़रा भी देर होजाय, तो सिद्धराज के सिपाही वहाँ आ पहुँचें और उन्हें अकाल मृत्यु से मरना पड़े। सिद्धराज को जब यह बात मालूम हुई, किकुमारपाल निकल गये, तो उन्हें पकड़ लाने के लिये कुछ घुड़सवार भेजे।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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