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कुमारपाल पैदा हुआ है, अतः किसी भी तरह उसे गादी पर न बैठने देना चाहिये । वह तभी तो गादी पर बैठेगा, जब कि जीवित रहेगा? तो मैं अभी से उसे क्यों न मरवा डालूँ ?" यों सोचकर, वे कुमारपाल को मार डालने का मौका ढूँढने लगे।
:२: कुमारपाल देथली के स्वामी त्रिभुवनपाल के पुत्र थे। उनकी स्त्री का नाम था-भोपालदे। उनके दो भाई थे, जिनमें से एक का नाम महिपाल और दूसरे का कीतिपाल था। दो बहनें थीं, जिनमें से हक प्रेमलदेवी
और दूसरी देवलदेवी कही जाती थीं। प्रेमलदेवी का विवाह, सिद्धराज के एक सामन्त कृष्णदेव के साथ और देवलदेवी का साँभर के राजा अर्णोराज के साथ हुआ था।
कुमारपाल को जब यह बात मालूम हुई, कि महाराजा-सिद्धराज की मुझ पर क्रूर-दृष्टि है और वे मुझे मार डालने का मौका ढूँढ रहे हैं, तब उन्होंने परदेश जाने का विचार किया ।इतने ही में, सिद्धराज ने उनके पिता का वध करवा डाला।
इस हत्या का समाचार पाते ही कुमारपाल समझ गये, कि अब मेरी बारी है। अतः वे अपने परिवार को वहीं छोड़कर, रातोरात भाग चले।