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ज्योतिषी थे, अतः उन्होंने कहा, कि-"अमुक वार तथा अमुक तिथि को अमुक समय समुद्र के किनारे पर जाना, वहाँ एक प्रतापी-पुरुष मिलेगा, उसी को अपनी कन्या विवाह देना"।
__ आज, ठीक वही तिथि और वही दिन था, अतः राजा के सिपाही समुद्र के किनारे आ पहुँचे । वहाँ आकर देखते हैं, कि चम्पे के झाड़ के नीचे एक महाप्रतापी पुरुष सो रहा है।
श्रीपाल कुमार जब जागे, तो उन्हें अपने आसपास सिपाहियों का झुण्ड दिखाई दिया। सिपाहियों ने श्रीपाल को प्रणाम करके कहा, कि-"आप राजमहल को पधारिये, आपको राजा की तरफ से निमन्त्रण है।
श्रीपाल राजमहल को गये । राजा उन्हें देखकर बड़े प्रसन्न हुए और अपनी कन्या का विवाह उनसे कर दिया। फिर राजा ने उन्हें एक ओहदा दिया, कि सभा में जो कोई नया-मनुष्य आवे, उसे पान का बीड़ा दें।
श्रीपाल के समुद्र में गिरते ही, धघलसेठ ने नीचप्रयत्न करना शुरू किया। उसने उन दोनों सतियों का सत् लूटने की बड़ी कोशिसे की, किन्तु सफल न हो सका।
श्रीपाल की दोनों स्त्रियें, जिनेश्वर-देव का स्मरण करती हुई अपना समय व्यतीत करती थीं।