________________
याँ करते-करते धवलसेठ के जहाज, कोंकणदेश के किनारे पर पहुँचे । बह एक बड़ी-भेंट लेकर राजा के यहँा गया । वहा दरबार में जाकर बैठते ही, श्रीपाल ने उसे पान का बीड़ा दिया। ___यह देखकर, धवलसेठ बड़े आश्चर्य में पड़ गया। वह विचारने लगा, कि-" यह मेरा दोस्त यहाँ कैसे आगया ? मैंने इसे समुद्र में फेंक दिया था, फिर भी जीवित ही निकल आया ? अच्छा, मुझे इसके लिये कोई दूसरी ही तरकीब करनी पड़ेगी।" ___“श्रीपाल तो हलके-कुल का मनुष्य है" यह प्रमाणित करने को उसने बड़े-बड़े प्रपंच रचे । किन्तु अन्त में पाप का घड़ा फूट गया और राजा को यह बात किसी तरह मालूम होगई, कि धवलसेठ महा-पापी है। अतः राजा ने धवलसेठ को प्राणदण्ड देने का विचार किया। किन्तु श्रीपाल के चित्त में यह बात आई, कि"चाहे जो हो, किन्तु धवलसेठ आखिर तो मेरे आश्रयदावा ही हैं। उन्हें ऐसा दण्ड न मिलने देना चाहिये।" उन्होंने, धवलसेठ को छुड़ाया और अपना मिहमान बनाया।
श्रीपाल ने धवलसेठ पर बड़ी कृपा की, किन्तु धवलसेठ के मन में से जहर दूर नहीं हुआ था। उन्होंने, कहीं से एक पालतू चन्दन--गोह प्राप्त की और रात्रि के