SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेम से बातें करना शुरू कर दिया। फिर, एक बार जहाज के किनारे पर मचान बँधवाया और धवलसेठ ने उस पर चढ़कर आवाज़ दी, कि-"श्रीपालजी ! यहाँ आइये, जल्दी आइये ! यदि देखना हो, तो यहाँ एक बड़ा अच्छा कौतुक है !" श्रीपाल कुमार के मन में, दगे की बू भी न थी, अतः वे उस मचान पर चढ़ आये । धवलसेठ ने एक धक्का मारा, जिससे श्रीपाल समुद्र में गिर पड़े। ___ समुद्र में, काला-भँवर पानी, जिसमें मकान इतनी ऊँची-ऊँची तरङ्ग उठती थीं। उसमें मगर तथा अन्यान्य भयङ्कर-प्राणी बाहर की तरफ मुँह निकालते थे । श्रीपारूजी ने, श्री नवपदजी का ध्यान किया और समुद्र में तैरने लगे। जलतरणी विद्या के प्रताप से, वे तैरते-तैरते कोंकणदेश के किनारे जा पहुंचे। यहाँ तक पहुँचने में, वे थककर चूर होगये थे, अतः पास ही के जंगल में एक चम्पे के झाड़ के नीचे जाकर सोगये। कोंकण देश के राजा की एक कन्या जवान होगई, जिसके लिये वर की बड़ी ढूँढ-खोज हो रही थी। किन्तु कहीं भी अच्छा-वर न मिलता था, अतः ज्योतिषी को बुलाकर उनसे ज्योतिष दिखवाया। ज्योतिषी भी पूरे
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy