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________________ भी जब्त हो जायेंगे।" यों सोचकर, लश्कर के सामने आ, उसे ललकारते हुए वे बोले, कि-"खबरदार ! धवलसेठ का बाल भी अगर छू लिया, तो खैरियत मत समझना ! अभी तुम लोगों ने श्रीपाल की तलवार का मज़ा नहीं चखा है !" यों कहकर, वे सेना की तरफ झपटे । भारी युद्ध मच गया, किन्तु श्रीपाल के शरीर में, उस विद्या के प्रभाव से चोट ही न पहुँचती थी । सेना के मनुष्य धड़ाधड़ जमीन पर गिरने लगे। थोड़ी ही देर में तो सारा लश्कर छिन्न-भिन्न होगया। श्रीपाल ने धवलसेठ को छुड़ा लिया। धवलसेठ ने अपना जीवन बचाने के बदले में, आधे जहाज श्रीपाल को दे दिये। बब्बरकोट के राजा को जब इस पराक्रमी-पुरुष का पता चला, तो उसने इनका बड़ा स्वागत-सत्कार किया और अपनी कन्या श्रीपाल को विवाह दी। ___ अब धवलसेठ ने श्रीपाल से कहा, कि-"श्रीपालजी ! रत्नद्वीप अभी बहुत दूर है और यहाँ रुकने से नुकसान होगा, अतः शीघ्र ही बिदाई लीजिये। श्रीपाल ने, अपनी स्त्री के साथ बिदाई ली । अब तो जहाज चल दिये और थोड़े ही समय में वे रत्नद्वीप बन्दर पर ना पहुँचे। यहाँ पहुँचकर, धवलसेठ अपना तथा श्रीपाल का
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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