SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पानी की गहराई नापते हैं, कुलीलोग माल जमा-जमाकर रखते हैं, हवा के जानने वाले हवा की गति देखते हैं, पहरा देनेवाले पहरा देते हैं, पालवाले पाल और उसकी डोरिये सम्हालते हैं, हलकारेलोग दौड़-दौड़कर सब काम-काज करते हैं और जहाज बीच समुद्र में चले जा रहे हैं। इतने ही में, एक हवा का जाननेवाला बोला, कि“सेठजी ! पवन धीरे-धीरे बहती है और सामने ही बब्बरकोट नामक बन्दरगाह दिखाई दे रहा है । वहाँ, थोड़ी देर के लिये जहाजों के लंगर डलवा दीजिये, तो जिन्हें मीठा-पानी और धन लेना हो, वे ले लें।" धवलसेठ ने हुक्म दिया, कि-" बब्बरकोट बन्दरगाह पर जहाजों के लंगर डाल दिये जावें"। ___ जहाज, बब्बरकोट बन्दर पर ठहरे । वहाँ राजा के सिपाहियों ने महसूल माँगा । धवलसेठ ने कहा, कि" महसूल काहे का ? हमें यहाँ कौन-सा व्यापार करना है, जो तुम्हें महसूल दें?"। इस बात पर बड़ी तकरार हुई, किन्तु धवलसेठ न माने । अब तो राजा ने अपनी सेना भेजी, जिसने आकर धवलसेठ को पकड़ लिया और उन्हें एक वृक्ष में उलटे लटका दिया । श्रीपाल ने सोचा, कि" सेठ ने यह बुरा काम किया, जो महसूल नहीं दिया। अब ये तो जान से मारे ही जावेंगे ही सब जहाज
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy