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जा रहे हैं"। श्रीपाल ने ये शब्द सुने, तो उनके हृदयमें यह विचार आयाः
उत्तम निज गुण से सुने, मध्यम बाप गुणेन । अधम ख्यात मामा गुणे, अधमाधम ससुरेण ॥ __ अर्थात्--जो अपने गुणों के कारण पहचाने जाते हैं, वे उत्तम-मनुष्य हैं । जो पिता के गुणों के कारण पहचाने जाते हैं, वे मध्यम हैं । जो मामा के गुणों के कारण मशहूर होते हैं, वे अधम हैं और जो ससुराल के नाम से पहचाने जाते हैं, वे अधम से भी अधम यानी सब से गिरे हुए माने जाते हैं।
“ मुझे धिक्कार है, कि मैं ससुराल के नाम से पहचाना जाता हूँ ! अच्छा, अब मुझे ससुर के गाँव में न रहना चाहिये"। यों सोचकर वे घर आये और माता तथा स्त्री से इज़ाज़त माँगी, कि-" परदेश जाकर मैं धन कमाऊँगा और उसके बल से अपना राज्य वापस लौटाऊँगा, अत: आपलोग स्वीकृति दीजिये"। माता और स्त्री को भला यह बात अच्छी तो क्यों लगती ? किन्तु सब बातें अपनी इच्छा के अनुसार ही कब होती हैं ? एक वर्ष में वापस लौट आने का वादा करके,श्रीपाल कुमार चल दिये।
ग्राम नगर और नदी नालों को पार करते हुए वे एक पहाड़ के पास पहुँचे । वहाँ, जंगल में एक मनुष्य