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गुरु ने कहा, कि-" नव अम्बिल करो और नवपदजी की आराधना करो। यदि सच्चे भाव से यह आराधना करोगे, तो नख में भी रोग न रहेगा।"
दोनों ने, अम्बिल-व्रत करना शुरू किया। ज्यों ही एक, दो और तीन अम्बिल-व्रत पूरे हुए, त्यों ही शरीर में फिर से अच्छापन आने लगा और पूरे नौ अम्बिल होते ही तो, सारा रोग दूर होगया। अब, श्रीपाल का शरीर सोने की तरह स्वच्छ होगया । उन सात-सौ कोढ़ियों ने भी ऐसा ही किया और उनके रोग भी दूर होगये।
अब मैनासुन्दरी के हर्ष की कोई सीमा ही न रही। जब कमलप्रभा को यह बात मालूम हुई, तो वह रास्ते से वापस लौट आई और उज्जैन में आकर उन सब से मिली। ___गाँव ही में, मैनासुन्दरी का मामा रहता था। उसे जब यह बात मालूम हुई, तो वह गाजे-बाजे से इन तीनों को अपने घर लिया लाया और बड़ा आदर-सत्कार करके, उन्हें रहने के लिये अलग राजमहल दिये।
एक बार श्रीपाल कुँवर घोड़े पर बैठकर, गाँव में घूमने निकले। वहाँ, एक मनुष्य ने उँगली का इशारा करके कहा, कि-" ये घोड़े पर बैठकर राजा के जमाई