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कुमार भूखा है, रानी के पास खाने को कुछ भी नहीं है, ऐसी ही दशा में वे एक कोढ़ियों के झुण्ड के पास पहुँचे। . सात-सौ कोढ़ियों का एक झुण्ड, जिनके शरीरों पर भयङ्कर कोढ़ थी और हाथों-पैरों की उँगलियें नहीं थी। उनके पास पहुँचकर रानी ने उनसे कहा, कि-"भाइयो ! विपत्ति के मारे हम तुम्हारे पास आये हैं, अतः तुम हमें सहारा दो"। यों कहकर, रानी ने सब सच्ची बात कह सुनाई। कोढ़ियों ने उत्तर दिया, कि-"माताजी ! हमें सहायता देने में कुछ भी आपत्ति नहीं है, किन्तु जो भी कोई हमारे साथ रहेगा, उसे भयङ्कर-कोढ़ हो जावेगी"। रानी ने फिर कहा, कि--"जो कुछ होना होगा वह होगा, किन्तु अभी तो हमें अपने प्राण बचाने दो."।
कोढियों ने अपने झुण्ड में उन्हें मिला लिया और रानी को एक सफेद चादर ओढ़ा दी। इसी समय राजा अजीतसेन के सिपाही ढूँढते-ढाँढते वहा पहुँचे और उन्होंने कोढियों से पूछा, कि-" तुम लोगों ने किसी स्त्री और एक कुमार को इधर से भागते हुए देखा है क्या ?"। कोढियों ने उत्तर दिया, कि-" हमें इस विषय में कुछ भी मालूम नहीं है और न हमने किसी को इधर से माते ही देखा है"। सिपाहीलोग चले गये और रानी बधा कुमार बच गये।