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अमरकुमार
ब्राह्मणी. राक्षसी के समान विकराल रूप धारण कर, हाथ में एक छुरी ले, आधी रात के समय बाहर निकली। ___ मानों, उसके क्रोध ही के कारण, क्षण भर के लिये हवा का बहना बन्द होगया और सब जगह सबाटा-सा छा गया. ___ अमरकुमार, भयङ्कर-भूमि में ध्यान लगाकर खड़े थे। ब्राह्मणी, उन्हें ढूँढती-ढूँढती वहीं आ पहुँची । उस समय उसके क्रोध का पार न था, उसकी आँखों से अनि बरस रही थी । वहाँ पहुँचकर, :उसने अपनी छुरी उठाई और अमरकुमार के कलेजे में घुसेड़ दी। अमरकुमार समझ गये, कि वैरिनि माता ने यह कडा घाव किया है । किन्तु उन्होंने अपने चित्त को स्थिर रखा।
वे, धर्म पर मरनेवाले महात्माओं का स्मरण और अन्तिम-भावना का विचार करने लगे।
" मैं सब प्राणियों से क्षमा माँगता हूँ, सब जीव मुझे क्षमा करें । संसार के सब जीव मेरे मित्र हैं, और मेरी किसी से भी शत्रुता नहीं है।"
ऐसी शुभ-भावना का ध्यान करते हुए, वे पृथ्वी पर गिर पड़े। ___ मानों, प्रकृति को इस छुरी के घाव की वेदना हुई हो, इस तरह उसी क्षण भयङ्कर-गर्जना सुनाई दी । यह, सिंहनी का शब्द था।