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________________ अमरकुमार ११ लगा हुआ था । सत्य का बल, उसके हृदय में भरा था । भला सत्य के सामने, असत्य की क्या चल सकती है ? सत्य के बल के सामने साँप भी फूलमाला बन जाते हैं और अनि हिमालय की तरह ठण्डी हो जाती है । सचमुच ऐसा ही हुआ । धाँय - धाँय करके जलती हुई अग्नि, बिल्कुल ठण्डी होगई और ध्यान में बैठा हुआ अमरकुमार एक योगी - सा दिखाई देने लगा । उसकी कंचन के समान काया में, कहीं ज़रा सा भी दाग न लगा था। इसी समय राजा पृथ्वी पर गिर पड़ा और उसके मुँह से रक्त की धार बहने लगी । प्रकृति भी अन्याय को कब तक सहन कर सकती है ? 1 सब लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ । वे, दौड़-दौड़कर बालक के चरणों में गिर पड़े और उससे प्रार्थना करने लगे, कि- " कृपा करके राजा को फिर खड़ा कर दीजिये, जो कुछ होना था, सो तो हो ही चुका, पर आपको क्रोध करना उचित नहीं है " । अमरकुमार बोले, कि - " सब में अच्छी बुद्धि पैदा हो और सब का कल्याण हो । मुझे, किसी पर न तो क्रोध ही ह और न वैर । " यों कहकर, उन्होंने पानी की अञ्जलि भरकर राजा पर छींट दी, जिससे राजा होश में आकर उठ खड़े हुए।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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