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________________ अमरकुमार अमरकुमार, हृदय-विदारक रुदन करता हुआ जा रहा था । उसे, रास्ते में जो मिलता, उसीसे वह छुड़ा लेने की प्रार्थना करता। किन्तु, उसे कौन छुड़ा सकता था ? सब यही जवाब देते थे, कि-" भाई ! तेरे माँ-बाप ने तुझे धन लेकर बेच दिया है, इसमें हम क्या कर सकते हैं ? " अमरकुमार को चित्रशाला में लाये और गंगाजल से स्नान करवाया । गले में फूलों की मालाएँ पहनाई और सिर पर केसर-चन्दन का लेप किया गया। ब्राह्मणलोग, मन्त्रोचारण करने लगे और हवन में घृत की आहुतियें दे-देकर उसे अधिक तेज़ करने लगे। ____ अमरकुमार खड़ा-खड़ा विचार करता है, कि-" अरे! इस संसारमें तो सब अपने स्वार्थ के ही सगे हैं ! क्या माता, क्या पिता, क्या कुटुम्ब-कबीला और क्या जाति-पाँति, किसी ने भी मुझे नहीं बचाया ! अब मैं क्या करूँ ?"। इतने ही में उसे याद आया, कि-" संकट से छुड़ानेवाला नवकार-मन्त्र है, तो लाओ नवकार-मन्त्र का ही जप करूँ"। यों सोचकर, उसने नवकार-मन्त्र जपना शुरू किया । ___ॐ स्वाहा ! ॐ स्वाहा ! की ध्वनि करते हुए ब्राह्मणों ने, अमरकुमार को हवन की प्रज्वलित-अग्नि में डाल दिया । किन्तु अमरकुमार का हृदय, इस समय ईश्वर के स्मरण में
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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