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अमेरकुमार
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ही हूँ । मेरे चार लड़कों के बजाय तीन ही लड़के थे, ऐसा समझ लूँगी । कम से कम यह हमेशा का भिखारीपन तो दूर हो।"
उसने ऋषभदत्त से कहा- “ आपने, वह ढिंढोरा सुना हैं, जो राजा की तरफ से पिटवाया गया है ? हमलोग, अपने अमर को दे क्यों न दें ? उसके बराबर सोना मिल जावेगा,
स्त्री फिर बोली - " इस में विचार क्या करते हो ? यह लड़का तो मुझे आँख के कंकर की तरह खटकता है । इसे राजा श्रेणिक को देकर आप तो उनसे इसके बराबर सोना तौला ही लो । "
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ऋषभदत्त ने सिपाहियों से कहा, कि - " बत्तीस-लक्षणवाला सुन्दर - कुमार मैं दूँगा " ।
अमरकुमार, ऋषभदत्त के समान भिखारी के यहाँ पैदा हुआ था, किन्तु फिर भी वह बत्तीस लक्षणों से युक्त था-उसकी बोली तथा उसका रहन-सहन आदि सब को प्रिय लगते थे । किन्तु माता से पूर्व - जन्म का वैर होने के कारण, वह अमरकुमार को ज़रा भी प्रेम न करती थी ।
अमरकुमार को बचपन से ही सन्त समागम बड़ा प्रिय था । जब उसे मालूम होता, कि कोई साधु-सन्त आये हैं, तो वह सब से पहले उनके पास पहुँच जाता, और उनकी सेवा - भक्ति करते हुए, वह उनका उपदेश सुनता ।
एक बार, इस नगर में एक ज्ञानी - साधु पधारे । अमर