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________________ अमरकुमार और यदि शाम को मिल जाता, तो सबेरे नहीं । जब, मनुष्य के बुरे-दिन आते हैं, तो उस पर कौन-सी तकलीफ नहों पड़ती ? बेचारा यह गरीब-ब्राह्मण, सारे दिन भिक्षा माँगकर किसी तरह अपना पेट पालता। इस ब्राह्मण को स्त्री भी बड़ी कर्कशा मिली थी । जब ब्राह्मण सारे दिन दौड़-धूपकर घर आता, तब वह स्त्री गालियों की वर्षा-सी करने लगती । वह कहती-" हे दरिद्री! बैठा क्यों रहता है ? इन बच्चों को जिलाना तो पड़ेगा, कि नहीं ? ये चार लड़के और एक लड़की, इन पाँचों को मैं क्या खिला दूँ ? न तो घर में नमक है और न तेल। फिर घी-गुड़ की तो बात ही क्या है ? ये बेचारे बच्चे सर्दी में भी नंगे की तरह दौड़ते फिरते हैं । कभी वार-त्यौहार पर भी इन बेचारों को अच्छा भोजन नहीं मिलता !" बेचारा ब्राह्मण, नीचा सिर कर के यह सब सुन लेता। ब्राह्मणी फिर कहना शुरू करती-" इस परिवार के विस्तार से भी मैं हैरान हो गई । इन बच्चों की नित्य नई इच्छाएँ होती हैं। इनमें भी इस छोटे अमर ने तो मुझ को बहुत ही परेशान कर डाला है । मुझसे इसकी माँगें कभी भी पूरी नहीं पड़ती। ___ अनेकों वर्ष इसी तरह व्यतीत हो गये, किन्तु इस ब्राह्मण का कुटुम्ब, जैसा का तैसा ग़रीब ही बना रहा। एक दिन, ब्राह्मणी ने राजा श्रेणिक का वह ढिंढोरा मुना। उसने विचार किया, कि-"लाओ इस अमर को दे ह्मण
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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