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जम्बूस्वामी यह बात सुनकर एक स्त्री ने कहा, कि-" स्वामीनाथ ! आप अपना ग्रहण किया हुआ विचार छोड़ते तो नहीं हैं, किन्नु, अन्त में गधे की पूंछ पकड़नेवाले की तरह आपको भी दुःखी होना पड़ेगा।
प्रभव ने कहा, कि-"फिर वह गधे की पूंछ पकड़नेवाले की क्या कथा है ?"
वह स्त्री बोली, कि-"एक गाँव में ब्राह्मण का एक लड़का रहता था। वह बड़ा ही मूर्ख था । उससे, उसकी माँ ने एक बार कहा, कि-' ग्रहण की हुई बात को फिर न छोड़ना, यह पण्डित का लक्षण है। ' उस मुख ने, अपनी माता का यह कथन अपने मन में धारण कर लिया । एक दिन, किसी कुम्हार का गधा घर से भागा । कुम्हार भी उसके पीछेपीछे दौड़ा । आगे चलकर, कुम्हार ने उस ब्राह्मण के लड़के को आवाज़ दी, कि-'अरे भाई ! जरा इस गधे को पकड़ना'। उस मूर्ख ने, गधे की पूँछ पकड़ लो । गधा अपने पिछलेपैरों से ज़ोर-ज़ोर से लातें मारने लगा, किन्तु फिर भी उस लड़के ने दुम न छोड़ी। यह देखकर, लोग कहने लगे, कि --'अरे मूर्ख ! गधे की पूँछ क्यों पकड़े है ? उसे छोड़ता क्यों नहीं ? ' यह सुनकर लड़के ने उत्तर दिया, कि-' मेरी माँ ने मुझे ऐसी शिक्षा दी है, कि पकड़ी हुई चीज़ को फिर न छोड़ना चाहिये । इस तरह, उस मूर्ख ने खूब दुःख उठाया।"