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जम्बूस्वामी
अब तो प्रभव घबराया और हाथ जोड़कर बोला-"सेठजी ! मुझे प्राण-दान दीजिये। यदि आप मुझे यहाँ से पकड़कर राजा के दरबार में पेश करेंगे, तो कोणिक राजा मुझे जान से मरवा डालेंगे। लीजिये, मैं आपको अपनी दो विद्याएँ देता है । इनके बदले में आप मुझे प्राण-दान दीजिये और अपनी स्तम्भिनी-विद्या (जहाँ का तहाँ रोक देनेवाली विद्या) दीजिये।
जम्बूकुमार ने कहा-" अरे भाई ! घबराओ मत, तुम्हें मैं प्राण-दान देता हूँ। मेरे पास विद्या कुछ भी नहीं है, केवल एक धर्म-विद्या है, वह मैं तुम्हें देता हूँ।" यों कहकर, प्रभव को उन्होंने धर्म का उपदेश दिया । उसे ऐसी बातें सुनने का अपने जीवन में यह पहला ही मौका था।
प्रभव ने धन की गठड़िये उतरवा डालीं, नींद वापस खींच ली और हाथ जोड़कर बोला-"जम्बूकुमार! आपको धन्य है, कि धन के ढेर और अप्सराओं के समान सुन्दरस्त्रियें छोड़कर दीक्षा ले रहे हैं । मैं तो महा-पापी हूँ और धन प्राप्त करने के लिये नीच-से-नीच रोजगार करता हूँ। किन्तु, आज मुझे अपने सारे जीवन का विचार हो आया है। सबेरे, मैं भी सब चोरों सहित आपके साथ दीक्षा लूँगा।"