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जम्बूस्वाम
सामने आया । प्रभव के पास दो - विद्याएँ थीं। एक तो नींद डाल देने की और दूसरी चाहे जैसे ताले खोल डालने की ।
वहाँ पहुँचते ही, उसने अपनी विद्याएँ आजमाईं । तत्क्षण ही सब नींद में पड़ गये और तिजोरियों के ताले टपाटप खुल गये । चोरलोगों ने, उनमें से इच्छानुसार धन लेकर गठड़ियें बाँधी ।
ज्यों ही वे धन की गठड़िये लेकर बाहर निकलने लगे, त्यों ही एकाएक रुक गये । प्रभव चारों तरफ देखने लगा । यह क्या ? वहाँ उसने जम्बूकुमार को जागते देखा । यह देखकर, वह बड़े विचार में पड़ गया और सोचने लगा, कि - "इसे नींद क्यों नहीं आई ? " ।
जम्बूकुमार का मन बड़ा मजबूत था । इसी कारण उन पर प्रभव की विद्या का कोई प्रभाव न हुआ । जिस समय चोरलोग चोरी कर रहे थे, तब वे विचार रहे थे, कि - "मुझे धन पर कुछ भी मोह नहीं है । किन्तु यदि आज बड़ी - चोरी होगई और कल ही मैं दीक्षा लूँगा, तो लोग मुझे क्या कहेंगे ? यही न, कि 'सब धन चोरी चला गया, अतः दीक्षा लेली ' । इसलिये चोरलोगों को ज्यों के त्यों तो कदापि न जाने देना चाहिये । " यह सोचकर उन्होंने पवित्र-मंत्र का जप किया, जिसके प्रभाव से सब चोर जहाँ के तहाँ खड़े रह गये ।