SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूस्वामी __ इन सब में एक विशालकाय जवान था, जिसके नेत्र बड़े-बड़े तथा लाल, एवं मुँह डरावना था । सब मनुष्यों के इकट्ठे होजाने पर वह बोला-" दोस्तो! आज तक हम लोगों ने बहुत सी चोरियें की हैं, किन्तु जितनी चाहिये उतनी सफलता कभी नहीं मिली। आज मैं एक जबरदस्त-मौका देख आया हूँ। राजगृही नगरी के ऋषभदत्त सेठ के यहाँ विवाह है । बहुत से सेठ-साहूकार वहाँ इकटे हुए हैं। यदि हमलोग अच्छी तरह हाथ मारेंगे, तो जब तक जियेंगे, तब तक चोरी करनी ही न पड़ेगी। इसलिये आज अच्छी तरह तयार रहना।" सब बोल उठे—“ हम तयार हैं ! हम तयार हैं ! आपकी जैसी आज्ञा हो, वैसा करने को हम सदैव तयार हैं !" इस बड़े-भारी डील-डौलवाले मनुष्य का नाम थाप्रभव । असल में वह एक राजा का पुत्र था, किन्तु बाप ने छोटे-भाई को गादी दे दी, अतः वह नाराज होकर घर से निकल गया और चोरी-डाका आदि का पेशा करने लगा। वह इतना जबरदस्त होगया, कि उसका नाम सुनते ही मनुष्यों के होश उड़ जाते थे । वह अपने पाच-सौ साथियों को लेकर तयार हुआ और अँधेरा होते ही शहर में दाखिल होगया। चलते-चलते वह जम्बूकुमार के मकान के
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy