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जम्बूस्वामी
वचन को पालन करने के लिये, हमने जो कन्याएँ तुम्हारे लिये स्वीकार कर ली हैं, उनके साथ अपना विवाह कर लो । फिर तुम्हारी इच्छा हो तो सुखपूर्वक दीक्षा ले लेना !" जम्बूकुमार बोले – “ आपकी आज्ञा मैं सिर - माथे पर चढ़ाता हूँ । किन्तु फिर मुझे दीक्षा लेने से आप रोकियेगा नहीं । "
माँ - बाप ने कहा - " बहुत अच्छा " ।
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ऋषभदत्त ने आठों कन्याओं के पिताओं को बुलवाया और उनसे कहा, कि - " हमारा जम्बूकुमार विवाह के बाद तत्क्षण दीक्षा लेगा । वह केवल हमारे आग्रह से अपना विवाह कर रहा है । अतः आपको जो कुछ भी सोचना हो, वह सोच लीजिये । पीछे से हमें कुछ मत कहना |
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यह सुनकर वे विचार में पड़ गये । अपने पिताओं को विचार में पड़े देख, उन कन्याओं ने कहा - " पिताजी ! आपको चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है । हम तो हृदय से जम्बूकुमार को वर चुकी हैं, अब जैसा वे करेंगे, वैसा ही हम भी करेंगी । "
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कन्याओं ने अपना यह निश्चय बतला दिया, अतः सात-दिन आगे की मिति विवाह के लिये तय होगई ।
जम्बूकुमार के विवाह में किस बात की कमी हो सकती थी ? बड़ा भारी मण्डप बाँधा गया, और उसे भाँति-भाँति
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