SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ जम्बूस्वामी बोले - " स्वामी ! मुझे जीवनभर के लिये ब्रह्मचर्य व्रत के पालन की प्रतिज्ञा करवा दीजिये " । सुधर्मास्वामी ने व्रत करवा दिया। यह व्रत लेकर मन में हर्षित होते हुए जम्बूकुमार अपने घर आये और माता-पिता से दीक्षा लेने की आज्ञा माँगी । माँ - बाप बोले - " बेटा ! दीक्षा लेना अत्यन्त कठिन कार्य है | पंच महाव्रत का पालन तलवार की धार पर चलने के समान कठिन है। तू तो अब भी बालराजा कहा जाता है, तुझसे साधु के कठिन - व्रत कैसे पल सकते हैं ? फिर तू अकेला ही तो हमारे प्यारा - लड़का है, तेरे बिना हमें एक क्षण भी अच्छा नहीं मालूम होगा । " जकुमार बोले - “ पूज्य माता - पिता ! संयम अत्यन्त कठिन है, यह आपका कहना ठीक है । किन्तु उसकी कठिनता से तो केवल कायरलोग ही डरते हैं। मैं आपकी कोख से पैदा हुआ हूँ, व्रत लेकर माण जाने पर भी उन्हें न तोहूँगा । मुझ पर आप लोगों का अपार प्रेम है, अतः मेरे बिना आ पको निश्चय ही अच्छा न मालूम होगा । किन्तु ऐसे वियोग का दुःख सहन किये बिना मुक्ति भी तो नहीं मिल सकती ! इसलिये आपलोग प्रसन्न होकर मुझे आज्ञा दीजिये । " माँ - बाप ने कहा - " पुत्र ! यदि तुम्हें संयम लेने की बहुत ही इच्छा हो, तो भी हमारी बात तुम्हें माननी चाहिये । हम तुम्हारे माता-पिता हैं, अतः हमारे दिये हुए
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy