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जम्बूस्वामी ___ एक दिन वन के रक्षक ने आकर बधाई देते हुए कहा, कि-" सेठजी ! वैभारगिरि पर श्री सुधर्मास्वामी पधारे हैं ।
समता के सरोवर तथा ज्ञान के समुद्र गुरुराज के पधारने से किसे प्रसन्नता नहीं होती ? जम्बूकुमार का हृदय हर्ष से उछलने लगा। उसने हिंडोला बन्द किया और गुरु के पधारने की खुशखबरी लाने के इनाम में अपने गले से मोती की माला निकालकर वनपाल को दे दी। वनपाल प्रसन्न होकर चला गया।
जम्बूकुमार ने सारथि से कहा-" सारथि ! सारथि ! रथ जल्दी तयार करो, वैभारगिरि पर गुरुराज पधारे हैं, मैं उनके दर्शन करने को जाऊँगा"। ___ सुन्दर सामग्रियों से सुशोभित रथ तयार किया गया, उसमें बैठकर जम्बूकुमार वैभारगिरि को चले । वैभागिरि राजगृही के बिलकुल नज़दीक था, अतः वे थोड़े ही समय में वहाँ पहुँच गये।
सुधर्मास्वामी भगवान महावीर के गणधर थे । वे, उस समय के सारे जैन-संघ के नेता थे। फिर भला उनके उपदेशों में अमृत की वर्षा के अतिरिक्त और क्या हो सकता था?
जम्बूकुमार उन्हें वन्दन करके उपदेश सुनने लगे । वे ज्यों-ज्यों उपदेश सुनते गये, त्यों-त्यों उनका मन संसार से