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कन्या यह देखकर बोली- “ इलाची ! एक बार और खेल करो | किनारे पर पहुँचे हुए जहाज को डुबाओ मत, मेरे कहने से और मेरे ही लिये एक बार फिर खेल कर डालो |
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इलाची ने पाँचवीं बार खेल शुरू किया । वह बाँस की चोटी पर जाकर खड़ा हुआ । इस समय उसे एक दृश्य दिखाई दिया । एक घर के दरवाजे पर सुन्दरता की खान एक स्त्री हाथ में चांदी का थाल लेकर खड़ी है । उस थाल में मिठाई तथा अन्यान्य अच्छी-अच्छी चीजें भरी है । वह, आग्रह कर-करके एक मुनिराज को बहराना चाहती है, किन्तु मुनिराज न तो वह मेवा-मिठाई लेते हैं. और न आँख उठाकर उसकी तरफ देखते ही हैं ।
यह देखकर, इलाची के हृदय में विचार आया, कि- " अहा ! धन्य है इन मुनिराज को । इनकी जवानअवस्था है, सामने ही इतनी रूपवती स्त्री खड़ी है, किन्तु उनका एक रोयाँ भी नहीं फरकता । और मैं ! मैं तो एक नटिनी के लिये घर-बार, धर्मध्यान आदि सारी बातें छोड़कर देश-विदेश घूम रहा हूँ ! इन मुनिराज को वह
आग्रह पूर्वक बहराना चाहती है, किन्तु वे नहीं लेते और मैं दान लेने ही के लिये ज़िन्दगी को खतरे में डालकर, इस बाँस पर चढ़ा हुआ खेल कर रहा हूँ ? और