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लगा । इसी कारण मैं तुम्हारा खेल नहीं देख सका । तुम फिर एक मर्तबा खेल करो, इस बार में ध्यान से देलूँगा।
इलाची तीसरी बार खेल करने लगा। किन्तु राजा फिर भी प्रसन्न नहीं हुआ। राजा के दिल में तो यह पाप घुसा बैठा था कि-"अभी यह किसी तरह गिरकर मर जायगा' फिर भला वह उसकी तारीफ क्यों करने लगा?
इलाची निराश होगया । यह देखकर नट-कन्या ने कहा कि-" इलाची ! निराश न हो। थोड़ी-सी बात के लिये सब किया-कराया बिगाड़ना मत । एक बार फिर खेल करके राजा को प्रसन्न करो, नहीं तो हम लोगों का विवाह न हो सकेगा।"
इलाची चौथी-बार रस्सी पर चढ़ा और विस्मय पैदा करनेवाले खेल करके दिखलाये । किन्तु फिर भी राजा प्रसन्न न हुआ।
सब लोगों को यह शक हो गया कि अवश्य ही राजा के पेट में कुछ पाप है । पटरानी को भी यह सन्देह हो गया कि निश्चय ही राजा के मन में कुछ दगा है।
- अब इलाची की निराशा का पार न रहा। नट